पैर कटने पर भी नहीं छोड़ा ऑटो चलाना -जज्बे को सलाम

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ट्रेन से पैर कटने पर भी ऑटो चलाना नहीं छोड़ा। रांची में रहनेवाला एक ऑटो ड्राइवर, अपनी जिंदगी से लोगों को नई राह दिखा रहे हैं। मुश्किलों से जो लोग हिम्मत हार जाते हैं। उन्हें लाइफ में कुछ करने के लिए हौंसला दे रहे हैं।

जी हां, बंटी गुप्ता जब अपनी ऑटो लेकर सड़क पर निकलते हैं। तो हर किसी के जुबान से उनके के लिए वाह शब्द ही निकलता है। दरअसल, बंटी के दोनों पैर ट्रेन की चपेट में आने से कट गए थे। हादसे के बाद वो पूरी तरह टूट चुका था। लेकिन, फिर से उसने जिंदगी की जंग जीती और पैर कटने पर भी ऑटो चलाकर फैमिली चला रहा है।

बंटी ऑटो चलाकर अपने परिवार का खर्च चलाता था। हादसे के बाद उसे लगा कि अब जिंदगी खत्म हो गई।स्थानीय लोगों ने उसे सदर अस्पताल पहुंचाया। इसके बाद उसे रिम्स ले जाया गया।करीब ढाई साल तक इलाज चलता रहा। करीब 17 लाख रुपए खर्च हुए। इतने पैसों की व्यवस्था में पूरा परिवार जुट गया।पत्नी छोटा-मोटा काम करने लगी। दिवंगत पिता के बैंक अकाउंट से कुछ पैसे निकाले। कुछ लोगों से उधार लिए।

ढाई साल इलाज के दौरान जिंदगी पटरी से उतर गई। लेकिन घर वालों ने हिम्मत नहीं हारी।इसके बाद बंटी डॉक्टर के कहने पर तीन साल तक घर पर आराम करता रहा।उसे बाथरूम जाने के लिए भी पत्नी से कहना पड़ता था। वो इलाज के लिए दिल्ली और जयपुर भी गया।लेकिन, वहां उसके साइज के प्रोस्थेटिक पैर नहीं मिले।

फिर रांची में ही डेढ़ लाख में प्रोस्थेटिक पैर बना कर दिए।नए पैर लगने के बाद बंटी को बेहद राहत मिली। अब वह दोबारा ऑटो चला सकता था।इन पैरों से वह चल तो नहीं सकता, लेकिन ऑटो चलाने में कोई दिक्कत नहीं। चलने वाले पैरों के लिए उसे 20 लाख रु. खर्च करने पड़ेंगे।

नए पैर लगाने के बाद उसे इस पर संतुलन बनाने के लिए दो महीने की ट्रेनिंग दी गई। इस दौरान पैरों में जख्म हो गए। खून भी निकला। लेकिन अब जख्म सूख चुके हैं और सब ठीक है।जब पैर था, तब प्रति दिन की कमाई एक हजार रुपए थी। अभी 500 से 600 रु. कमा पाता है।सुबह सात बजे से दोपहर दो बजे तक ऑटो चलाता है। सरकार से मदद की उम्मीद थी, लेकिन मिली हर महीने मात्र 700 रुपए की मदद।

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