क्या आपने कभी सुना है कि एक शिक्षक की विदाई पर पूरा गांव रो पड़ा हो ? फरिश्तों के बारे में तो आपने सुना ही होगा, लेकिन यहां एक शिक्षक पूरे गांव के लिए फरिश्ता बन कर आया। जिसने गांव की तकदीर ही बदल डाली, शिक्षा की ताकत क्या होती है इस व्यक्ति ने साबित कर दिया। जहां आज भी गांव में नाम के लिए स्कूल है और शिक्षा की उतनी अच्छी सुविधा नहीं है जितनी की बड़े बड़े शहरों में ,वहीं उत्तर प्रदेश स्थित गाजीपुर जिले के बभनोली निवासी अवनीश यादव ने शिक्षा के बल पर एक गांव की जिंदगी सवार दी।
2009 में अवनीश की तैनाती गौरी बाजार के एक प्राथमिक विद्यालय पिपराधन्नी गांव में हुई। अवनीश जब विद्यालय गए तो उन्होंने देखा कि यहां न तो स्कूलों में छात्र जाते हैं और न ही शिक्षक। गांव वालों के लिए उनके बच्चे उनके कामकाज के हिस्सेदार थे, जितने ज्यादा हाथ उतनी ज्यादा कमाई।
जब अवनीश यहां के विद्यालय में पढ़ाने जाना शुरू किया तो शुरू में ऐसा वक्त भी रहा जब कक्षा में केवल दो या तीन बच्चे ही आते थे, ऐसी स्थिति देखकर उन्होंने इस गांव में घर-घर जाकर लोगों से सम्पर्क किया, चूंकि गांव में गरीब मजदूरों की संख्या काफी ज्यादा थी, यही वजह है कि उन्हें काफी मशक्कत करनी पड़ी। हालांकि, अवनीश की मेहनत रंग लाई और धीरे-धीरे मजदूरों ने अपने बच्चों को स्कूल भेजना शुरू कर दिया। अवनीश न सिर्फ गांव के बच्चों को स्कूल तक ले आए, बल्कि दिन रात उनके साथ मेहनत करके उन्हें इतना काबिल बना दिया कि बड़े-बड़े स्कूलों के बच्चे इस प्राथमिक विद्यालय के बच्चों के सामने फेल हो जाए।
अवनीश ने केवल 6 सालों में पूरे गांव की तस्वीर बदल कर रख दी। नतीजा यह हुआ कि ग्रामीण अवनीश को अपने बेटे की तरह मानने लगे। अवनीश को सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा कई पुरस्कार प्रदान किए गए। मगर, अचानक अवनीश का उस गांव से तबादला हो गया। अवनीश के तबादले खबर मिलते ही यूं लगा जैसे बच्चों से उनका अभिभावक और गांव से उसकी किस्मत दूर जा रही हो। दो दिनों पहले इधर अवनीश की विदाई हो रही थी, उधर पूरा गांव आंसुओं में डूब गया। छात्रों के साथ-साथ गांव का हर व्यक्ति फूट-फूटकर रोने लगा।
गांव का हर आदमी केवल यही कह रहा था, शिक्षक हो तो ऐसा। गांव वाले बताते हैं कि हम गांव की सीमा तक उन्हें छोड़ने गए थे, जब उन्होंने गांव की पगडण्डी को छोड़ा तो वो बार-बार मुड़कर पीछे देख रहे थे।