इसे उत्तरी अरल सागर, पूर्व बेसिन, पश्चिम बेसिन और सबसे बड़े हिस्से दक्षिणी अरल सागर के नाम दिया गया।2009 तक सागर का दक्षिण-पूर्वी हिस्सा पूरी तरह से सूख गया और दक्षिण-पश्चिमी हिस्सा पतली पट्टी में तब्दील हो गया।
सागर के सूखने से सबसे ज्यादा नुकसान यहां की फिशिंग इंडस्ट्री को हुआ। फिशिंग इंडस्ट्री पूरी तरह से खत्म हो गई, जिसके चलते बेरोजगारी और इकोनॉमिक क्राइसिस का दौर शुरू हो गया। पानी सूखने के चलते पॉल्यूशन बढ़ा है और अरल सागर के इलाके में रह रहे लोगों को सेहत से जुड़ी परेशानियों से जूझना पड़ रहा है। मौसम पर भी इसका जबरदस्त असर पड़ा है। गर्मी हो या सर्दी, दोनों ही कहर बरपा रही है।
इस सागर के सूखने की शुरुआत सोवियत संघ के एक प्रोजेक्ट के चलते हुई। 1960 में सोवियत संघ के सिंचाई प्रोजेक्ट के लिए नदियों का बहाव मोड़ा गया था, जिसके बाद से ही इस सागर के सूखने का सिलसिला जारी है।
सागर को सूखने से बचाने और उसके हिस्से उत्तरी अरल सागर को भरने के लिए कजाखस्तान का डैम प्रोजेक्ट 2005 में पूरा हो गया था, जिसके बाद 2008 में सागर में पानी का स्तर 2003 की तुलना में 12 मीटर तक बढ़ा था। हालांकि, इन सबके बावजूद सागर की स्थिति को ज्यादा सुधारा नहीं जा सका।